Mon. May 13th, 2024

वाराणसी। धर्म नगरी काशी में हर उत्सव बेहद भव्य और अनोखे रूप से मनाया जाता है। ऐसी ही एक काशी की परंपरा का निर्वहन सदियों से चला आ रहा हैं। कार्तिक मास में गंगा तट, सरोवर- तालाबों और कूपों के साथ घर की छतों तक पर आकाशदीप जलाने की पुरानी परंपरा है। शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक काशी में घाट किनारे अद्भुत छटा निखर उठती है। 28 अक्तूबर 27 नवंबर तक पूरे एक माह काशी इस प्राचीन परंपरा के आश्रय में रहेगी।

कैसी होती हैं आकाश दीप लगाने की तैयारी

वाराणसी के दिव्य कार्तिक मास की तैयारी भी काफी अनोखी होती हैं। आकाशदीप को लगाने के लिए लोग 15 से 20 फीट के बांस की खरीदारी करते है। बांस के अंतिम छोर पर विशेष बांस की ही बनी एक टोकरी में दीप को रखकर रस्सी के सहारे खींच कर प्रतिदिन शाम को दीप प्रज्ज्वलित कर प्रार्थना की जाती हैं।

आस्था के संगम को दर्शाता है पिटारी में टिमटिमाता दीप

परलोक के पुण्य पथ पर गतिमान दिवंगत आत्माओं का मार्ग हमेशा रोशनी से भरपूर रहे, इसी सोच के साथ काशी के घाटों पर आपको पूरे कार्तिक महीने में आकाशदीप टिमटिमाते नजर आएंगे। बलराम मिश्र ने बताया कि पौराणिक ग्रंथों में आकाशदीप की आध्यात्मिक मान्यता भी दर्ज है। ग्रंथों के अनुसार आकाश परम ब्रह्मा परमात्मा का प्रतीक है। बांस की पिटारी में प्रयुक्त खपच्चियां जीवात्मा के वजूद को दर्शाती हैं। पिटारी में टिमटिमाता दीप आस्था के संगम को दर्शाता है।

पर्यटकों को आकर्षित करता है यह अनोखी परम्परा

काशी आने वाले पर्यटकों की भीड़ इस मास में काफी अधिक होती हैं। जानकार बताते हैं कि अक्टूबर और नवंबर में पर्यटकों की भी संख्या अच्छी खासी वाराणसी में बढ़ जाती हैं और घाटों पर लगे यह पिटारी में टिमटिमाता दीप लोगों के मन में काफी प्रश्न खड़ा करते हैं तो वहीं कुछ लोग चांद की चादनी के साथ इस पिटारी में टिमटिमाते दीप की तस्वीर लेते हुए दिखाई देते हैं।

विज्ञापन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *