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वाराणसी। काशी विद्यापीठ ब्लॉक के ग्राम टिकरी निवासी ज्योति (26) ने बताया कि आशा पूजा दीदी की मदद से वह एंबुलेंस के जरिये सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मिसिरपुर पहुंची। वहाँ उन्होंने सामान्य प्रसव से तीसरे स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। जननी सुरक्षा योजना वार्ड में तैनात स्टाफ नर्स मंजु व समस्त स्टाफ ने पूरा ध्यान रखा। योजना के तहत 1400 रुपये भी खाते में आ चुके हैं। साथ ही पहले बच्चे पर उन्हें प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई) के तहत तीन किस्तों में पाँच हजार रुपये भी प्राप्त हुये। पाँच माह का बच्चा अब पूरी तरह स्वस्थ है। ज्योति का परिवार हो चुका है। ऐसे में आशा दीदी ने स्थायी परिवार नियोजन साधन अपनाने की सलाह भी दी।

केस-2 : ग्राम टिकरी की ही कृष्णा (28) ने बताया कि चार माह पहले उन्होंने सीएचसी मिसिरपुर में एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। स्वास्थ्य केंद्र तक आने जाने में आशा पूजा दीदी ने बहुत मदद की। उनका तीसरा बच्चा है और योजना के तहत 1400 रुपये भी खाते में पहुँच गए। साथ ही पहले बच्चे पर पीएमएमवीवाई योजना के तहत पाँच हजार रुपये भी मिल चुके हैं। सरकार की यह दोनों योजनाएँ बहुत ही अच्छी हैं।

टिकरी में हरजन बस्ती की आशा कार्यकर्ता पूजा मौर्य बताती हैं कि वह वर्ष 2017 में आशा बनीं थीं। तब गाँव में घरेलू प्रसव का प्रचलन था। लेकिन बहुत संघर्षों के बाद संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला। अब गाँव के सभी परिवार जागरूक हो चुके हैं। सभी लोग उन्हें घर का सदस्य मानते हैं और उनकी सलाह भी मानते हैं। किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या होने पर तुरंत फोन करते हैं। संस्थागत प्रसव के साथ ही वह बच्चों व गर्भवती के नियमित टीकाकरण, गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल, परिवार नियोजन परामर्श, किशोर-किशोरी स्वास्थ्य सहित अन्य परामर्श भी देती हैं।

मंडलीय अपर निदेशक (स्वास्थ्य) डॉ० मंजुला सिंह ने कहा – संस्थागत प्रसव को बढ़ाने एवं मातृ व शिशु मृत्यु दर को घटाने के उद्देश्य से जननी सुरक्षा योजना पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है। संस्थागत प्रसव का सबसे बड़ा लाभ यह मिलता है कि प्रसव के समय जच्चा-बच्चा को सुरक्षित रखने के साथ ही प्रसव पश्चात आने वाली जटिलता को आसानी से संभाला जा सकता है। इसके अलावा प्रसूता को जननी सुरक्षा योजना के तहत आर्थिक मदद भी मिलती है। सरकारी अस्पताल पर प्रसव कराने पर ग्रामीण क्षेत्र की प्रसूताओं को 1400 रुपये व शहरी क्षेत्र की प्रसूताओं को 1000 रुपये की आर्थिक मदद दी जाती है। साथ ही एंबुलेंस से आने-जाने की सुविधा मिलती है।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ० संदीप चौधरी का कहना है कि घरेलू प्रसव होने पर जच्चा-बच्चा की हालत बिगड़ने की संभावना अधिक रहती है और उस स्थिति में अस्पताल लाना पड़ता है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकारी चिकित्सालयों, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों और स्वास्थ्य उपकेन्द्रों में ही महिलाओं का प्रसव कराएं। राजकीय चिकित्सालयों व स्वास्थ्य केन्द्रों में सामान्य प्रसव के बाद 48 घंटे और सिजेरियन प्रसव के करीब एक सप्ताह तक देखभाल की जाती है। स्वास्थ्य विभाग का प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं का संस्थागत प्रसव कराया जाए। इसके लिए आशा कार्यकर्ता, संगिनी व एएनएम, समुदाय में संस्थागत प्रसव के फायदे और जननी सुरक्षा योजना के बारे में जागरूक करें जिससे शिशु एवं मातृ मृत्यु दर में कमी लायी जा सके।

संस्थागत प्रसव के फायदे : सीएमओ ने बताया कि कुशल डॉक्टर व प्रशिक्षित स्टाफ की देखरेख में जिला चिकित्सालय और स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रसव होता है। किसी भी जटिल परिस्थिति से निपटने में आसानी रहती है। इसके साथ ही आवश्यक दवा और उपकरणों की मौजूदगी, बच्चे की जटिलता पर तुरंत चिकित्सीय सुविधा, संक्रमण का खतरा न रहना, खून की कमी पर पूर्ति की सुविधा आदि रहती है। जन्म के समय बच्चे को सांस नहीं आ रही या धीमी आ रही है तो सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में उनके उपचार सुविधा मौजूद है।

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