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वाराणसी। दनियालपुर शिवपुर निवासी 37 वर्षीय सुनीता (परिवर्तित नाम) बताती हैं कि करीब दो साल पहले उन्हें हाथ में झुनझुनाहट रहती थी, उसका रंग भी हल्का होने लगा था। नसों में भी बहुत दर्द रहता था। नजदीक के मेडिकल स्टोर से दवा ली लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। ऐसे में स्टोर मालिक ने अस्पताल में दिखाने की सलाह दी। इसके बाद वह डीडीयू राजकीय चिकित्सालय गईं। वहाँ कमरा नंबर 321 में स्थापित कुष्ठ रोग क्लीनिक में खुद को दिखाया। जांच हुई तो कुष्ठ रोग की पुष्टि हुई। वह बताती हैं “इस बीमारी से वह बहुत परेशान थी। कोई काम भी ठीक से नहीं कर पाती थीं। करीब एक साल तक मैंने सरकारी दवा खाई और पूरी तरह ठीक हो गई। घर में और किसी भी सदस्य को कुष्ठ रोग नहीं है”।

केस- 2 : सारनाथ निवासी 36 वर्षीय रोशनी (परिवर्तित नाम) बताती हैं कि करीब छह माह पहले मई में उनके हाथ-पैरों में सुन्नता, नसों में बहुत अधिक दर्द भी रहता था। इस बीच उन्हें पाण्डेयपुर स्थित जिला कुष्ठ रोग क्लीनिक के बारे में पता चला। वहाँ उन्होंने जांच कराई तो कुष्ट रोग की पुष्टि हुई। वह परेशान थी कि कैसे ठीक होगा। इस जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ राहुल सिंह ने आवश्यक दवा के साथ परामर्श भी दिया। नियमित दवा खाने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने छह माह तक अपना सम्पूर्ण उपचार कराया। अब वह पूरी तरह ठीक हैं। वह बताती हैं “शुरुआत में ही इस बीमारी का उपचार करा लिया तो मैं पूरी तरह ठीक हो गई”।

सुनीता और रोशनी की तरह ऐसे कई कुष्ठ रोगी थे, जो अपना सम्पूर्ण उपचार करवा चुके हैं और अब वह पूरी तरह स्वस्थ हैं। पाण्डेयपुर स्थित डीडीयू राजकीय चिकित्सालय के कमरा नंबर 321 में स्थापित जिला कुष्ठ रोग क्लीनिक, कुष्ठ रोगियों के लिए वरदान साबित हो रहा है। जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ राहुल सिंह ने बताया कि पिछले साल 100 कुष्ठ रोगी पाये गए थे, जिसमें से 89 कुष्ठ रोगियों का उपचार पूरा हो चुका है। इस साल अब तक 118 रोगी चिन्हित हुए हैं जिसमें से 75 कुष्ठ रोगियों का उपचार पूरा हो चुका है। वर्तमान में जनपद में 106 रोगियों का उपचार चल रहा है, जिसमें पुराने रोगी भी शामिल हैं। खास बात यह है कि जनपद में कुष्ठ रोग का प्रसार प्रति 10 हजार की आबादी पर 0.24 प्रतिशत है जो प्रदेश के किसी भी जनपद से बेहद कम है। प्रदेश की दर 0.41 प्रतिशत है। इसके अलावा वार्षिक नए रोगी खोजने की दर प्रति एक लाख में 4 प्रतिशत है। जबकि प्रदेश की दर 5.95 प्रतिशत है। जनपद में वर्ष 2017-18 से अब तक बच्चों में कुष्ठ रोगियों की दर शून्य है। साथ ही वर्ष 2016-17 से अबतक दिव्यांगता दर भी शून्य है।

उन्होंने बताया कि वाराणसी कुष्ठ रोग उन्मूलन को लेकर निरंतर सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। वर्तमान में 112 सदस्यों (कुष्ठ रोगियों के नज़दीकी) को कुष्ठ से बचाव की दवा खिलाई जा रही है। अप्रैल 2023 से अब तक 912 और पिछले वर्ष 1450 व्यक्तियों को दवा खिलाई गई। पिछले वर्ष 173 कुष्ठ रोगियों को एमसीआर चप्पल प्रदान की गई। जबकि इस साल अब तक 43 रोगियों को एमसीआर चप्पल प्रदान की जा चुकी है। साथ ही इस साल अब तक 45 रोगियों को सेल्फ़्केयर किट भी प्रदान की जा चुकी है। उन्होंने बताया कि क्लीनिक में प्रतिदिन 100 की संख्या में ओपीडी हो जाती है।

क्या है कुष्ठ रोग और कैसे बचा जाए : डॉ० राहुल ने बताया कि कुष्ठ रोग, जिसे हैनसेन रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह बैसिलस माइक्रो बैक्टीरियम लेप्राई के जरिए फैलता है। हवा में यह बैक्टीरिया किसी बीमार व्यक्ति से ही आते हैं। यह एक संक्रामक रोग है। यह उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों (एनटीडी) की श्रेणी में आता है। यह छुआछूत की बीमारी बिल्कुल नहीं है। यह रोग किसी कुष्ठ रोगी के साथ बात करने या उसके बगल में बैठने यह छूने से नहीं फैलता है। उन्होंने बताया कि कुष्ठ रोग मुख्य रूप से चमड़ी एवं तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है। यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है और कुछ वर्षों में लोगों को पूरी तरह से कुष्ठ रोग के लक्षण नजर आने लगते हैं। यदि शुरुआत में ही रोग का पता चल जाए और उसका समय से उपचार शुरू कर दिया जाए तो रोगी को दिव्यांगता से बचाया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि डॉ राहुल सिंह कुष्ठ रोग पर दो पुस्तकें लिख चुके हैं। साथ ही चार जरनल भी प्रकाशित हो चुके हैं।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ० संदीप चौधरी ने बताया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कुष्ठ रोग उन्मूलन को लेकर निरंतर गतिविधियों, अभियानों का संचालन किया जा रहा है। किसी भी व्यक्ति के अंदर यदि कुष्ठ रोग के लक्षण दिखाई देते हैं तो वह जल्द से जल्द जांच कराकर तुरंत उपचार कराएं।

कुष्ठ रोग नहीं है

• ऐसे चमड़ी पर बने दाग-धब्बे, जिसमें खुजली होती हो ।
• ऐसे चमड़ी के दाग-धब्बे, जो किसी मौसम में आते हों और चले जाते हो ।
• ऐसे चमड़ी के दाग-धब्बे, जो जन्म से हो ।
• ऐसे चमड़ी के दाग-धब्बे, जो दवा, मलहम से ठीक होते हो ।
• ऐसे दाग-धब्बे, जो दूधिया सफेद हो ।
*कुष्ठ रोग है –*
• ऐसे चमड़ी के दाग-धब्बें जिनका रंग चमड़ी के रंग से हल्का या गाढ़ा हो ।
• ऐसे चमड़ी के दाग-धब्बे, जिसमें निश्चित सूचता हो
• ऐसे चमड़ी के दाग-धब्बे, जिसमें न बाल हों न ही पसीना आता हो ।
• हाथ पैर में झुनझुनाहट हो ।
• हाथ-पैर एवं आँख की पुतलियों की मांस-पेशियों में कमजोरी हो ।
• हाथ-पैर में टेढ़ापन और विकृति हो ।
• हाथ-पैर की नसों में दर्द हो ।
• चेहरे और कान में गाँठें हो ।
• दर्द रहित छाला, घाव तथा जलने से हुआ घाव यदि दर्द रहित हो।

पिछले अभियानों में खोजे गए कुष्ठ रोगी

• वर्ष 2020-21 में 86 टीम ने 99,159 लोगों की स्क्रीनिंग व जांच की जिसमें 13 कुष्ठ रोगी पाये गए।
• वर्ष 2021-22 में 84 टीम ने 1,03,128 लोगों की स्क्रीनिंग व जांच की जिसमें 26 कुष्ठ रोगी पाये गए।
• वर्ष 2022-23 में 195 टीम ने 2,43,019 लोगों की स्क्रीनिंग व जांच की जिसमें 8 कुष्ठ रोगी पाये गए।
• वर्ष 2023-24 में 152 टीम ने 1,95,972 लोगों की स्क्रीनिंग व जांच की जिसमें 27 कुष्ठ रोगी पाये गए।

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